मज़बूरी
ये हमारी मज़बूरी ही तो हैकि घर आये मेहमान कोभगवान कहना ही है ."अतिथि देवो भाव:" का स्वरमन को मजबूर कर लाना ही है .है ये और कष्टकर जबउस आये मेहमान से हमेंकोई कामधेनु न मिले .उल्टे उस देव कि सेवा मेंहमरी धन रानी चलती हुई दिखे .
और अगर ये आग-लगाऊ दुनियावालेगलती से पूछ देभईया!आप तो हो देवतावरना कौन इन महानदेवो को देवो भाव: की संज्ञा देतो वो बंदा भी पुल्ल्कित होस्वर अलापेगा --"हाँ,भाई !मानव एक समाजिक प्राणी हैये नाते -रिश्तेदार उन्ही के हिस्से हैउन्हें ढ़ोना" हमारी मज़बूरी ही तो है"
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