हाथों में सपनों का कटोरा लिए,
उस आसमान की ओर ताकती हूँ |
ख्वाबों के चादर पर चढ़,
देख फिर कैसे मैं नाचती हूँ |
बादलों पे बने उस सिंहासन पर,
बैठना मैं चाहती हूँ|
समुद्र की गहराई से,
उस अंनंत ऊँचाई तक
यू ही विचरना चाहती हूँ|
जिम्मेदारियों से परे,
दुनिया के लवों-लक्ष से कोसो दूर ,
मैं निरुद्देश्य,
यू ही भटकना चाहती हूँ |
मैं ये चाहती हूँ ,मैं वो चाहती हूँ ,
न जाने मैं क्या- क्या चाहती हूँ
बस उन सपनों को पूरा होते देखना
मैं चाहती हूँ |
उस आसमान की ओर ताकती हूँ |
ख्वाबों के चादर पर चढ़,
देख फिर कैसे मैं नाचती हूँ |
बादलों पे बने उस सिंहासन पर,
बैठना मैं चाहती हूँ|
समुद्र की गहराई से,
उस अंनंत ऊँचाई तक
यू ही विचरना चाहती हूँ|
जिम्मेदारियों से परे,
दुनिया के लवों-लक्ष से कोसो दूर ,
मैं निरुद्देश्य,
यू ही भटकना चाहती हूँ |
मैं ये चाहती हूँ ,मैं वो चाहती हूँ ,
न जाने मैं क्या- क्या चाहती हूँ
बस उन सपनों को पूरा होते देखना
मैं चाहती हूँ |