मंगलवार, 21 सितंबर 2010

एक प्रेमिका अपनी कोमल भावनायें अपने प्रेमी के सामने कुछ इस से तरह रखती है.

काश!

काश! तुम ऐसे होते,
जेठ की दोपहरिया में,बरगद की छाव हो जैसे.
प्यासे पथिक के मुहँ में,दो बूंद पानी हो जैसे.
अंधेरी गली में जला वो,एक मात्र दीपक हो जैसे.

काश! मैं ऐसी होती
तुम्हारी मजबूत बरगद की डाली से,
लिपटी वो कोमल लतायें हो जैसे .
उस अंधेरी गली में जलने वाले, 
एक मात्र दीपक की बाती हो  जैसे.
तुम्हारे जीवन की एक मात्र नायिका हो जैसे.

काश! तुम-मैं ऐसे होते 
तुम चाँद तो मैं तुम्हारी चाँदनी हो जैसे.


  


सोमवार, 20 सितंबर 2010



मिस्ड कॉल


फोन पर बजी वो आधी घंटी
लो आया वो मिस्ड कॉल
एक अनबुझ पहेली बन 
फिर टंन-टनाया वो मिस्ड कॉल



क्या,क्यों,कैसे ?
अपने साथ कई सवाल,
लेकर आय वो मिस्ड कॉल



खुद के पैसे बचाने को 
दुसरों के पैसे लगाने को 
आया वो दुश्मन मिस्ड कॉल



अब क्या करोगे?
जवाब ढुंढने करोगे कॉल बैक
या फिर तुम भी दोगे 
मिस्ड कॉल



हाँ,भाई सिर दर्द है
 ये बेमतलब के  
"कॉल" 
जिसे हम कहते है "मिस्ड कॉल"

शनिवार, 18 सितंबर 2010

आज का समय स्वःकेन्द्रित होता जा रहा है. आज सभी अपनी ही दुनिया में जीते है,कोई किसी की मदद्त नहीं करना चाहता.ऐसे में अगर कोई सामने मर भी रहा हो तो भी लोग उसकी मदद्त नहीं करना चाहेगें.इसके पीछे बहुत हद तक हमारी कानून व्यवस्था भी जिम्मेदार है.आईये देखते है कैसे?

सच क्या है?

सच क्या है?
ये तो सिर्फ में जानती हूँ
या मेरा ख़ुदा.!!

रोड के किनारे गिरा वो चाकू
और कुछ दूर पे ,
मिला वो खूनी ढाँचा.

गये तो मदद्त को,
 पर ये क्या ?
कानून ने हमें ही धरदबोचा
और कहाँ ............
"इसका कोई प्रमाण नहीं कि
तुम जो बोल रहें हो
वो कानून की किताब में सच हो!
कौन मानेगा कि तुमने खून नहीं किया,
कि तुम वहाँ सिर्फ थे,जहाँ उसका खून हुआ.
कि तुमने गलती से उस चाकू को छुआ
जिससे उसकी मौत हुई"

क्योंकि तुम्हारे ख़िलाफ सारे सबूत है इसलिये
 तुम खूनी हो, खूनी हो,खूनी हो!!!

पर सच क्या है,
ये तो सिर्फ मैं जानती  हूँ
या मेरा ख़ुदा .



 





 

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

आज कल हर कोई यही कहता है कि दुनिया अब बहुत ख़राब हो गयी है.सब जगह इतना ज्यादा भष्ट्राचार है कि कोई इसके प्रकोप बच नहीं सकता.पर क्या ये सच है?

दुनिया बदलेगी.


कैसे बैठे उस चौपाल पर,बतियाँ रहे हो.
नहीं बदलेगी ये दुनिया,सब को बोल रहे हो
आखिर तुमने किया ही क्या है
इस दुनिया के लिए
जो इसके ना बदलने कि बात बता रहे हो

हर बार सभा बुला-बुला
भष्ट्राचार का राग अलाप रहे हो
कभी आतंक तो कभी आतंकबादी का नाम ले
अपनी कमजोरी छुपा रहे हो !

सरकार तो सरकार है
पर क्या तुम
अपने आस-पास के
माहौल को बदल रहे हो ?

क्या कहा नहीं!
पर क्यों?
भाई हमें स्कूल जाना है ,
हमें दफ्तर जाना है ,
हमें घर के काम से छुट्टी नहीं
क्या बदलेगी ये दुनिया,
बदलने को हम ही मिले?

हाँ भाई दुनिया बदलने को
सिर्फ आप ही नहीं बने ?
फिर क्यों बैठे उस चौपाल पे
ये राग सुना रहे हो ?
नहीं बदलेगी ये दुनिया
सब को बाता  रहे हो !

दुनिया बदलने का काम,ये नहीं कि
पहले हम नेता बने ,फिर सोचे कि दुनिया बदलनी है .
बल्कि ये सोचे कि
पहले दुनिया बदले,फिर नेता हम बने .

बदलाब हर छोटी- छोटी चीजों से आता है,
अगर तुम स्कूल जा रहे हो
तो आपने सच्चे छात्र होने का परिचय दो,
दफ्तर में जा घूसखोरी से तौबा करो ,
घर में प्रेम बना
एक अच्छे समाज का निर्माण करो,
खुद में संतुष्ट रहो और समाज को
खुशहाली का पैगाम दो.

इस तरह हर व्यक्ति की
अपने काम के प्रति आस्था ही
दुनिया बदले सकती है
ना कोई सरकार और ना कोई फोर्स हमें बचा सकती है.

इसलिये मैं  कहती हूँ
ये दुनिया बदलेगी,बदल के देखो
ये हँसेगी,हँसा के देखो
पर पहले उस चौपाल से ,
कर्म के मैदान में उतर के तो देखो.