काश!
काश! तुम ऐसे होते,
जेठ की दोपहरिया में,बरगद की छाव हो जैसे.
प्यासे पथिक के मुहँ में,दो बूंद पानी हो जैसे.
अंधेरी गली में जला वो,एक मात्र दीपक हो जैसे.
काश! मैं ऐसी होती
तुम्हारी मजबूत बरगद की डाली से,
लिपटी वो कोमल लतायें हो जैसे .
उस अंधेरी गली में जलने वाले,
एक मात्र दीपक की बाती हो जैसे.
तुम्हारे जीवन की एक मात्र नायिका हो जैसे.
काश! तुम-मैं ऐसे होते
तुम चाँद तो मैं तुम्हारी चाँदनी हो जैसे.