गुरुवार, 20 जनवरी 2011

क्षण

क्या खूब कहा  किसी शायर  ने
 क्यों कर  मानव किसी से नफ़रत
रोया तू  हर क्षण प्रति क्षण  में
आया था तू  नंगा, जायेगा दो ग़ज में |

धन-वैभव दोस्त सभी
क्षण भर के ये साथी है|
नहीं है तेरा कुछ भी
जो रो रहा तू इनके जाने में |

जिस दिन ये आँखों की पुतलियाँ बंद होगी,
उस दिन ना दुश्मन की तलवार दिखेगी,
और ना चाहने वालों की कतार ही मिलेगी,
बस सब और अँधेरे होगा |

फिर क्यों कर  मानव किसी से नफ़रत
तू  रो रहा है
हर क्षण-प्रति क्षण में 
आया था तू  नंगा, जायेगा दो ग़ज में |



5 टिप्‍पणियां:

  1. क्या खूब कहा किसी शायर ने.....
    काफी समय बाद आप के ब्लॉग पर आया हूँ. यह देख कर अच्छा लगा कि आपने अपने लिए कुछ समय निकालकर फिर से उम्दा पंक्तियाँ लिखी है.

    जवाब देंहटाएं
  2. सृष्टि1/24/2011 08:14:00 am

    वरुण जी आप लोगों की ही दुआ है कि थोड़ा-बहुत लिख लेती हूँ| आप ने कविता को सराहा इसके लिए आपका धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर ....गणतंत्र दिवस की मंगलकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  4. धन-वैभव दोस्त सभी
    क्षण भर के ये साथी है|
    नहीं है तेरा कुछ भी
    जो रो रहा तू इनके जाने में

    one the truth of life , is in ur poem great

    जवाब देंहटाएं
  5. संगीता1/27/2011 04:24:00 am

    सृष्टि जी,
    बहुत खूबसूरती से आपने अपनी भावनाओं को कविता के रूप में ढाला है. आशा है अपनी इन कोमल मानवीय भावनाओं को बौद्धिकता और भौतिकता की अंधी दौड़ में भी बचा के रखोगी और सदैव ऐसे ही लिखती रहोगी .

    नफरत की दीवार गिरा दे,
    प्रेम का अहसास जगा दे.
    जीव-मात्र से स्नेह करें सब,
    ऐसा कुछ कर के दिखला दे.

    शब्दों की दौलत से तुम,
    नित नव-जीवन के अध्याय लिखो.
    लिख-लिख-लिख लिखती जाओ तुम,
    मानव के उत्थान के गीत.

    जवाब देंहटाएं