शनिवार, 18 जून 2011

ज़िन्दगी कभी ख़त्म नहीं होती

ज़िन्दगी  कभी ख़त्म नहीं होती,
एक राह के खो जाने पर, दूसरी बंद नहीं होती |
 एक चिराग के बुझ जाने पर, रोशनी कम नहीं होती |

लोगों की भेड़ चाल देख, खुद ही भेड़ बन गए |
चाहते हो क्या जिन्दगी से,
ये पूछे बिना ही चल दिए |

हार के एक बार, फिर बार -बार ,
विपरित लहरों से कश्ती कभी पार नहीं होती |
किनारे बैठे रोने से कभी नाव खुद नहीं चल देती |

फूल हो आम का तो गुलाब कैसे बनोगे ?
गलती है तुम्हारी जो अपनी मिठास को छोड़,
सामने पड़े  गुलाब की खुशबू के से बनने को चल दिए| 
ना पहचान खुद को आप-ही -ग़म के सागर की ओर चल दिए |

पर जिन्दगी कभी ख़त्म नहीं होती
क्योंकि कोशिशे कभी बंद नहीं होती,
बस पहचान अपने आपको !
फिर चिराग तो क्या ,
सूरज की रोशनी भी कम होती |

5 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी6/18/2011 07:19:00 am

    ब्लॉग पर वापस आने के लिए बधाई.
    बहुत प्रेरणादायक कविता है
    ऐसे ही लोगों के जीवन में नई रोशनी भरती रहो

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  2. सरल शब्दों में एक सुंदर रचना । आपका प्रयास बहुत अच्छा है , भविष्य के लिए शुभकामनाएं

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  3. बेनामी7/29/2011 11:16:00 am

    interesting touching da heart

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