एक अलसाई नींद से जागी तो
एक सुनहरी सुबह को देखा,
बादलों में आधा छुपा आधा निकला
वो पहला सूरज देखा |
पेड़ की डालियों और ऊची मंजिलों की ओट से निकलते
उन उनमुक्त पंछियों के झुंड को एक साथ उड़ते देखा |
हर रोज चिड़ियों को दाने देता, उस नेकदिल इंसान को देखा
कसरत करते उन कर्मठ लोगों को देखा,
दफ्तर जाने के लिए तैयार होते,
एक सुनहरी सुबह को देखा,
बादलों में आधा छुपा आधा निकला
वो पहला सूरज देखा |
पेड़ की डालियों और ऊची मंजिलों की ओट से निकलते
उन उनमुक्त पंछियों के झुंड को एक साथ उड़ते देखा |
हर रोज चिड़ियों को दाने देता, उस नेकदिल इंसान को देखा
कसरत करते उन कर्मठ लोगों को देखा,
दफ्तर जाने के लिए तैयार होते,
लोगों के नित-दिनचर्या को देखा |
और इन सब के बीच
और इन सब के बीच
देखा अपने आपको,
इस नई होती सुबह में,
नई उर्जा- नए आत्मविश्वास के साथ,
एक नई राह पर बढ़ते देखा |
नई उर्जा- नए आत्मविश्वास के साथ,
एक नई राह पर बढ़ते देखा |
acha likha hai
जवाब देंहटाएंसृष्टि जी,
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आपकी रचना पढने को मिली.
सुबह की गुनगुनी धूप सी सुहावनी कविता है.
आशा है आगे भी लिखती रहोगी.
और इन सब के बीच
जवाब देंहटाएंदेखा अपने आपको,
इस नई होती सुबह में,
नई उर्जा- नए आत्मविश्वास के साथ,
एक नई राह पर बढ़ते देखा |
Sunder.... Yahi Sakaratmak soch bani rahe..... Shubhkamnayen
सृष्टि जी,
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत अंदाज़ में पेश की गई है पोस्ट.....