शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

अयोध्या की विवादित जमीन पर मालिकाना हक को ले कर चल रहे विवाद का अंत क्या होगा, इसकी कल्पना करना कठिन है?पर एक कवि की नजर से आप सोचे कि कही किसी स्वर्ग-लोक में राम और रहीम इस मुद्दे पर मंथन कर रहे हो तो वो आपस में क्या सोचते होगे? मेरी माने तो शायद यही बोलते होगे कि..........



राम  और  रहीम 
राम से कहा रहीम ने ,
देखो आज हमारे बच्चे कैसे लड़ते है?
हमारे एक ही नाम को दो बता,
आपस में ही मर-मिटते है.

पूरी धरती को छोड़,
बस दो ग़ज की जमीन के लिए ,
अपनो  को ही लहुलुहान करते है.

एक ही घर को कभी मंदिर तो कभी मस्जिद का,
रुप दिलवाने को,
ये मुर्ख! अदालत को भी जाते है.

कुरान-रामायण के वास्तविक मूल्यों को भूल,
अपना ही पाखण्डी ग्रंथ लिखते जाते है.
आस्था के नाम पे,
 ये मासूम आवाम को गुमराह किए जाते है.

लोगों से क्या लेना बस आपनी ही मनवाते है. 
भावनाओं की तोड़-जोड़ में,
अपनी मखमली राजनीतिक गद्दी भर बनवाते है.

यह सब देख-सुन, 
भाई राम! क्या हम ऐसी भक्ति से
खुश हो पाते है?

   
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