क्या खूब कहा किसी शायर ने
क्यों कर मानव किसी से नफ़रत
रोया तू हर क्षण प्रति क्षण में
आया था तू नंगा, जायेगा दो ग़ज में |
धन-वैभव दोस्त सभी
क्षण भर के ये साथी है|
नहीं है तेरा कुछ भी
जो रो रहा तू इनके जाने में |
जिस दिन ये आँखों की पुतलियाँ बंद होगी,
उस दिन ना दुश्मन की तलवार दिखेगी,
और ना चाहने वालों की कतार ही मिलेगी,
बस सब और अँधेरे होगा |
फिर क्यों कर मानव किसी से नफ़रत
तू रो रहा है
हर क्षण-प्रति क्षण में
आया था तू नंगा, जायेगा दो ग़ज में |
क्या खूब कहा किसी शायर ने.....
जवाब देंहटाएंकाफी समय बाद आप के ब्लॉग पर आया हूँ. यह देख कर अच्छा लगा कि आपने अपने लिए कुछ समय निकालकर फिर से उम्दा पंक्तियाँ लिखी है.
वरुण जी आप लोगों की ही दुआ है कि थोड़ा-बहुत लिख लेती हूँ| आप ने कविता को सराहा इसके लिए आपका धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ....गणतंत्र दिवस की मंगलकामनाएं
जवाब देंहटाएंधन-वैभव दोस्त सभी
जवाब देंहटाएंक्षण भर के ये साथी है|
नहीं है तेरा कुछ भी
जो रो रहा तू इनके जाने में
one the truth of life , is in ur poem great
सृष्टि जी,
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से आपने अपनी भावनाओं को कविता के रूप में ढाला है. आशा है अपनी इन कोमल मानवीय भावनाओं को बौद्धिकता और भौतिकता की अंधी दौड़ में भी बचा के रखोगी और सदैव ऐसे ही लिखती रहोगी .
नफरत की दीवार गिरा दे,
प्रेम का अहसास जगा दे.
जीव-मात्र से स्नेह करें सब,
ऐसा कुछ कर के दिखला दे.
शब्दों की दौलत से तुम,
नित नव-जीवन के अध्याय लिखो.
लिख-लिख-लिख लिखती जाओ तुम,
मानव के उत्थान के गीत.