सोमवार, 3 मई 2010



समय नहीं है

समय नहीं है, समय नहीं है,
यारो मेरे पास समय नहीं है
दिन में बैठने को,रात में सोने को ,
समय नहीं है ?
क्या करूँ भईया, मेरे पास समय नहीं है,

सुबह अलार्म की घंटी बजते ही,
आधे सोये आधे- जागे,
दफ़्तर को किसी तरह भागते
दिनभर दफ़्तर कि फाईलो में सर खपाते,
शाम को किसी तरह थके-हारे घर को लौटते

घर लौट,सिर्फ हम इतना ही पाते,
बीवी ने माँ से मुहँ फुलाया,
बच्चो ने लॉलीपॉप ना मिलने से मुहँ लटकाया,

इन सारे को सुलझाते-सुलझाते,
आधी रात हम गवाते,
बाकी बची रात में,
कल क्या मुनाफा कमाना है,
ये सोचते-सोचते शायद हम सो जाते ?

फिर वही अलार्म की घंटी बजती,
और फिर उसी रूटीन को हम पाते,
इन सब के बीच में,
सिर्फ हम इतना ही कहा पाते,
यारो मेरे पास समय नहीं है?

1 टिप्पणी:

  1. सही कहा सृष्टि जी, आज कल हर किसी के पास वक़्त कहाँ ,,,,,,,

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