गुरुवार, 6 मई 2010



प्रभु की रची इस माया जाल में फसा हुआ मानव अपने लिए नित-नये सपने बुन रहा होता है पर वो हमेशा इस दुविधा में रहता कि आखिर वो क्या करे कि उसके सपने सच हो जाये.इसी माया के प्रकोपवस हर साल कई नौजवान छोटे इलाके से निकल, बरे शहरों कि तरफ रुक करते है पर उस जगह से अंजान होने के कारण उन्हें समझ नहीं आता कि वो आखिर शुरुआत कहा से करे.कुछ इसी तरह कि दुविधा में फसे एक युवक के उपर ये कविता लिखी गयी है जो खुद नहीं जनता कि उसे किस तरह अपनी मंजिल तक पहुँचना है? वो तो सिर्फ इतना ही जानता कि चाहे कुछ भी हो जाये उसे अपने सपनो को साकार करना है.................!

जानते नहीं!
आये है इस अंजान जगह जाने कितने सपने लेकर?
कभी पूरे होगे की नहीं,
जानते नहीं!
पर जानते तो सिर्फ इतना है कि
हमें कुछ करना है,कुछ कर दिखाना है
पर कैसे,
जानते नहीं ?

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